Friday, July 15, 2011

गुरु तत्व ही मुख्य है..........ज्ञान है।

गुरु तत्व ही मुख्य है..ज्ञान है। और, आज गुरु पूर्णिमा है।

ये ५००० वर्ष पुरानी है, जब भगवान श्री कृष्ण ने उद्धव को कई प्रक्रियाओं और ध्यान करने की विधि के साथ गोप गोपियों के पास भेजा था। गोप गोपियां भक्ति भाव से ओत प्रोत थे, और हमेशा नाचते गाते रहते थे। उद्धव, भगवान श्री कृष्ण के बहुत नज़दीकी व्यक्ति थे, और बड़े ज्ञानी थे। तो, उद्धव गोप गोपियों को ज्ञान देने लगे, उन्हें मुक्ति के बारे में बताने लगे पर किसी को उन बातों में रुचि नहीं थी।

उन्होंने कहा कि, ‘हमें कृष्ण की कथा सुनाओ। ये बताओ कि द्वारिका में जहाँ वे हैं, वहाँ क्या हो रहा है? हमें तुम्हारी ज्ञान की बातें नहीं चाहिये। इन्हें अपने पास ही रखो। हमे तो कृष्ण की खबर सुनाओ। चलो अब हम नाचे गायें। ज्ञान तो बहुत सुन लिया है, चलो अब उत्सव मनायें। हम में प्रेम और तीव्र लालसा है, और कुछ नहीं है। हमें ज्ञान की परवाह नहीं है। हम प्रेम में प्रसन्न हैं। तो चलो, नाचे गायें।’

यही कहानी है कि वे बस यही करना चाहते थे! देखो, प्रेम कैसे तुम्हें दीवाना बना देता है! पर जीवन में कम से कम कभी कभी दीवाना होना अच्छा है। उस समय सभी भेदभाव मिट जाते हैं। तुम अपने आस पास की दुनिया में सब को अपना जानने लग जाते हो, और पूरे विश्व के साथ एक हो जाते होयही ‘गुरु तत्व’ है।

सदियों से यह ज्ञान विश्व में चलता चला आया है। तो, आज हम गुरुओं की परंपरा में हुये सभी गुरुओं के प्रति अपना आभार प्रगट करेंगे। पितृत्व और मातृत्व की ही तरह गुरु-तत्व होता है| गुरु तत्व का अर्थ है, ‘मैं तुम्हारा भला चाहता हूँ। मुझे अपने लिये कुछ नहीं चाहिये।’

हर किसी में थोड़ा गुरु तत्व होता ही है। तो, किसी ना किसी के गुरु बनो। हाँ, आर्ट आफ़ लिविंग के शिक्षक तो यह पात्र अदा करते ही हैं। जब वे आकर गुरु के स्थान पर बैठते हैं तब उनकी चेतना में कुछ परिवर्तन आता है, है ना? तब तुम भीतर से ख़ाली होते हो, और जिसकी जो आवश्यकता होती है, उसे तुमसे वो मिल जाता है। तो, तुम विश्व के दर्पण बन जाते हो – यह गुरु तत्व है – कोई बंधन नहीं, कोई छाप नहीं, केवल आत्मा का प्रतिबिंब।

ज्ञान के मोती .... (और पढ़ने के लिए क्लिक करें )

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